" "मिला वो भी नहीं करते, मिला हम भी नहीं करते,
वफ़ा वो भी नहीं करते, दगा हम भी नहीं करते,
उन्हें रुसवाई का दुःख, हमें तन्हाई का डर,
गिला वो भी नहीं करते, शिकवा हम भी नहीं करते,
किसी मोड़ पे मुलाक़ात हो जाती है अक्सर,
रुका वो भी नहीं करते, रुका हम भी नहीं करते,
जब भी देखते हैं उन्हें, सोचते हैं कुछ कहें उनसे,
सुना वो भी नहीं करते, कहा हम भी नहीं करते
लेकिन यह भी सच है की उन्हें भी है मोहब्बत हमसे,
इंकार वो भी नहीं करते, इज़हार हम भी नहीं करते ..!"
Manish © 2011
उन्हें रुसवाई का दुःख, हमें तन्हाई का डर,
गिला वो भी नहीं करते, शिकवा हम भी नहीं करते,
किसी मोड़ पे मुलाक़ात हो जाती है अक्सर,
रुका वो भी नहीं करते, रुका हम भी नहीं करते,
जब भी देखते हैं उन्हें, सोचते हैं कुछ कहें उनसे,
सुना वो भी नहीं करते, कहा हम भी नहीं करते
लेकिन यह भी सच है की उन्हें भी है मोहब्बत हमसे,
इंकार वो भी नहीं करते, इज़हार हम भी नहीं करते ..!"
Manish © 2011
बहुत खूब मनीष जी,प्रचलित शब्दों का प्रयोग करके अच्छी रचना की है
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